Sunday, 1 February 2015

Fennec Maithili launch - most covered event of Mozilla


First of all thanks a lot to Media who covered the event with great enthusiasm. Here one can see the some of the reporting. Some ten media group covered the event.

From the starting we try to organize the event with local ways and flavour and this is very helpful in making any event successful. We printed one invitation card as well to send to media and some of our esteemed guests.
We invited Mr Narendra Narayan Yadav, Cabinet Minister, Government of Bihar to inaugurate our event.  The function was presided over by well known linguist Mr Govind Jha. The special key note was given by distinguished political analyst Prof Ajay Kumar Jha. Rajesh Ranjan welcomed the guests in the event. The valedictory address was given by Mr Rakesh Roshan, a Maithili language community member and the person who arranged most of the things in Patna, Bihar. Rakesh's vision and experience in organizing such an event was fantastic and gave us a great return. Thank you Rakesh. In Patna, lot of people helped us and we are thankful to Prabhas jee, Brajraj jee, Kala Roy. The pix of the event is here.

We are thankful to Localization team and reps team of Mozilla for funding the event. Umesh Agarwal filed budget and helped us in lot of ways. Thank you Umesh. Shahid Jee is helpful and gave us good insight of events happening in India. Thank you Rajesh for the mentors hip to the Maithili Team.  


Tuesday, 11 June 2013

Maithili is not only a language, it is also a source of rich wisdom – Mr. Ajay Kumar Jha

Mozilla Firefox Maithili Workshop Report May 2013

On 29th May 2013, Mozilla Firefox Maithili workshop was organized by community of Maithili Computer developer working under Bhasha Ghar, a group of volunteers working for small languages having less resources. Mozilla Firefox Maithili workshop was a full day workshop where the community working with Mozilla along with some experts of Maithili language sat together to discuss the issues and challenges related to Firefox Maithili. This workshop was inaugurated by sociologist and political thinker Prof Ajay Kumar Jha, A.N.Sinha Institute of Social Studies. This workshop was hosted by Siddhant Prakashan in its office based in Mini Market, PunaiChak, Patna.

By inaugurating the workshop, Prof. Ajay Kumar Jha told that Firefox is now available in Maithili language and it is a pioneer work. Today computer is like a typing pad. He told that Maithili is not only language but it is a source of rich wisdom. Like the languages Punjabi, Tamil, Nepali, the Maithili language is a language of two countries. He said that Maithili language and zone is a region of harmony among people of different caste and creed. He told that UNESCO like organizations should come to help languages like Maithili. He suggested several points to promote the work done by Maithili community in the field of Maithili Computing led by Rajesh Ranjan, Sangeeta Kumari and Rakesh Roshan.

In this workshop, a Firefox Maithili Translathon was also organized to complete the remaining translation of Firefox in Maithili for the latest Firefox. Firefox is already released and available for use freely in Maithili since more than one year. The community discussed about the need of promotion of Firefox Maithili through different media. Though Firefox is available in Maithili language, but lots of people don't know about it. The community discussed with experts about the need of linguistic resources and stressed on the need of developing the style guides, more terminologies for translation.
The people present in the workshop stressed on the need of organizing this type of workshop in future as well for Firefox as well as Maithili computer in general. Jay Prakash, Manoj Kumar, Prabhas Kumar, Bajraj kumar, Rakesh Kumar, Pratibha Kumari, Nivedika Kumari and Hirdyanand Jha also participated in the work shop and presented their views. The work shop ended with vote of thanks by Rakesh Roshan.

Wednesday, 12 September 2012

जाना-माना फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र अब मैथिली में उपलब्ध

जाना-माना फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र अब मैथिली भाषा में रिलीज कर दिया गया है। इसके पहले तक यह ब्राउज़र बीटा टेस्टिंग संस्करण में उपलब्ध था और इसे अब विधिवत् व आधिकारिक रूप से मोज़िल्ला ने मैथिली के प्रयोक्ताओं के लिए जारी कर दिया है। सन् 2000 के मुताबिक कुल मैथिली भाषी लोगों की संख्या करीब साढ़े तीन करोड़ है और ये सभी अपनी भाषा में इंटरनेट ब्राउज़िंग का आनंद ले सकते हैं। मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स एक फ्री और ओपनसोर्स ब्राउज़र है जिसे मोज़िल्ला फाउंडेशन समुदाय की मदद से तैयार करती है। दुनिया की करीब चौथाई आबादी इंटरनेट चलाने के लिए मोज़िल्ला फ़ायरफ़ॉक्स का उपयोग करती है और इस लोकप्रिय ब्राउज़र अब मैथिली भाषा में उपलब्ध है। इसके पहले फ़ायरफ़ॉक्स 77 अन्य भाषाओं में रिलीज की जा चुकी है। यह जानना सुखद है कि यह मैथिली में उपलब्ध पहला ब्राउज़र है और यह विंडोज़, लिनक्स और मैक तीनों ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए उपलब्ध है। मैथिली फ़ायरफ़ॉक्स को आप यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं।

इस काम को अंजाम दिया है भाषा घर परियोजना के तरह कार्य कर रहे कुछ स्वयंसेवक।  इसके संयोजन का दायित्व मुझे मिला और इसके लिए मैं सौभाग्यशाली हूँ। राजेश रंजन के मार्गदर्शन में इस ब्राउज़र को तैयार करने में मदद करनेवालों में राकेश रोशन, प्रतिभा के साथ बहुतेरे लोगों का योगदान रहा है। इसके तहत मैथिली कंप्यूटिंग के क्षेत्र में फेडोरा ऑपरेटिंग सिस्टम, लिब्रेऑफिस ऑफिस सूइट, मैथिली स्पेलचेकर सहित कई अन्य उपयोग अनुप्रयोगों को जारी किया जा चुका है। भाषा घर प्रोजेक्ट स्वयंसेवकों की मदद से वैसी भाषाओं पर काम करती है जो किसी सांस्थानिक समर्थन से वंचित हैं। इस संबंध में अन्य जानकारी के लिए यहाँ देखें।

Sunday, 26 September 2010

नामवरजी से लंबी बातचीत

सात-आठ साल पहले नामवरजी के साथ हुई बातचीत काफी लंबी चली थी...उन्होंने धर्म, साहित्य और राजनीति के अतर्संबंधों पर खुलकर बातें की थी. कुछ अंश देखिए...

सही कहा कि हर दौर का अपना एक राम होता है. और यह बदलता रहा है. कबीर के लिए निर्गुण-निराकार राम था, तुलसी के लिए अवतार का राम था, गांधी ने रामराज्य की कल्पना की थी परंतु गांधी का रामराज्य अलग था, तुलसी का अलग. इस दौर में मैथिलीशरण गुप्त ने सवाल भी उठाया था कि ‘राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है.’ मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा, उनका भी नाम लेना चाहिए. ‘साकेत’ में ऐसा नहीं लगता कि वो किसी अवतारी का काव्य लिख रहे हैं. अपने ढंग से देखा उन्होंने. जिसमें आपका मन रमे और जो आप में रमा हुआ हो, वही राम है. राम का अर्थ यही है जो रम जाए. वो भाव और वो आदर्श वो चरित्र और वो घटना राम हो सकती है. इसलिए ऐसा बराबर हुआ है कि एक ही चरित्र पर विदेशों में भी,जैसे फाउस्ट बहुत महत्वपूर्ण ग्रीक मिथोलोजिकल फिगर थे, अंग्रेज नाटककार मार्लो ने एक नाटक लिखा उनपर, सर टामस मान ने लिखा, उसके पहले गेटे ने भी फाउस्ट पर लिखा, एक फाउस्ट पर इतने लोगों ने लिखा है. हर संस्कृति और सभ्यता में कुछ ऐसे चरित्र होते हैं जो उसके अंग बन जाते हैं. 

बातचीत काफी लंबी है गर रोचक लगे तो यहाँ पढ़ें - 
ॐ, हाइमाट और घर – महज शब्द नहीं, पूरी संस्कृति हैं – नामवर सिंह


Tuesday, 14 September 2010

चिदम्बरम साहब, अपने मंत्रालय की हिंदी सुधारिए

पी चिदम्बरम साहब के भाव-विभोर कर देने वाले संदेश को पढ़ने के बाद अगर आप गृह मंत्रालय की हिन्दी साइट को देखें, तो शुरुआत ही उनकी और उनके मंत्रालय यानी गृह मंत्रालय की हिन्दी के प्रति निष्ठा का आभास होना शुरू हो जाएगा. आपको क्लिक करना होगा...'हिन्दी मे'. और फिर शुरू होगी एक ऐसी पीड़ा जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम होगा.  देखिए यहाँ.

Wednesday, 25 November 2009

राजेन्द्र यादव और मन्नू भंडारी की पारिवारिक तस्वीरें

राजेन्द्र यादव और मन्नू भंडारी ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें हिन्दी साहित्य से थोड़ा भी सरोकार रखने वाला शायद हर व्यक्ति जानता होगा. हाल ही में राजेन्द्र जी ने अस्सी को पार किया है. मैं जब दिल्ली में बतौर पत्रकार काम करती थी तो संस्कृति जगत की कई जानी-मानी हस्तियों को करीब से देखने का सौभाग्य मिला था. हम लिटरेचर इंडिया पर राजेन्द्रजी और मन्नूजी और उनके परिवार की कुछ तस्वीरों को रख रहे हैं. दाहिनी ओर स्थित विज़ेट में कुछ ऐसी ही तस्वीरों को देखिए. उम्मीद करते हैं आपको पसंद आएगी.

Friday, 13 November 2009

196 - कुछ कम तो नहीं


मैंने ब्राउज़ करते हुए यूनेस्को की साइट पर एक नक्शे में खतरे की कगार पर खड़ी भाषाओं की सूची में पाया कि मात्र भारत में ही 196 भाषाएं विलुप्त होने की विभिन्न स्थितियों पर हैं. तो 196 भाषाओं को  निकट भविष्य में भारत के नक्शे से मिटा दिया जाएगा. आप नक्शा देखें, ध्यान से. इन भाषाओं को मुख्य रूप से हमारे आदिवासी आबादी द्वारा बोला-सुना जाता है. हमने जंगल ले लिया है, हमने उनका भोजन ले लिया है; अब उनकी भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं. एक भाषा मर रही है, एक संस्कृति मर रही है; 196 भाषाएं मरेंगी, 196 संस्कृतियां मरेंगी. अल्पसंख्यक भाषा और उसकी संस्कृति के लिए उपलब्ध कराए गए मूलाधिकार का क्या होगा? यह अच्छा नहीं है, यह स्वस्थ संकेत तो नहीं ही है.

अल्पसंख्यक के नाम पर हमें उर्दू और पंजाबी सरीखी भाषाएं शायद याद आती हैं. इनका क्या होगा? हम अपने हिन्दी भाषी क्षेत्र में ही अवधी, ब्रज, मगही, अंगिका जैसी भाषाओं को मिटाते जा रहे हैं. बिहार सरकार का उदाहरण लें तो वहां कुछ अकादमियां हैं इनके नाम पर. लेकिन शायद भाषा व संस्कृति नीतीशजी की बौद्धिकता से सरोकार नहीं रखती हैं. विषयांतर हो रहा है...लेकिन भाषाएं संस्कृति की अभिलेखागार हैं और भाषाओं और इस बहाने संस्कृतियों को हम लगातार धीमी मौत की नींद सुलाते जा रहे हैं. इसके क्या कारण हैं...!?