Sunday, 26 September 2010

नामवरजी से लंबी बातचीत

सात-आठ साल पहले नामवरजी के साथ हुई बातचीत काफी लंबी चली थी...उन्होंने धर्म, साहित्य और राजनीति के अतर्संबंधों पर खुलकर बातें की थी. कुछ अंश देखिए...

सही कहा कि हर दौर का अपना एक राम होता है. और यह बदलता रहा है. कबीर के लिए निर्गुण-निराकार राम था, तुलसी के लिए अवतार का राम था, गांधी ने रामराज्य की कल्पना की थी परंतु गांधी का रामराज्य अलग था, तुलसी का अलग. इस दौर में मैथिलीशरण गुप्त ने सवाल भी उठाया था कि ‘राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है.’ मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा, उनका भी नाम लेना चाहिए. ‘साकेत’ में ऐसा नहीं लगता कि वो किसी अवतारी का काव्य लिख रहे हैं. अपने ढंग से देखा उन्होंने. जिसमें आपका मन रमे और जो आप में रमा हुआ हो, वही राम है. राम का अर्थ यही है जो रम जाए. वो भाव और वो आदर्श वो चरित्र और वो घटना राम हो सकती है. इसलिए ऐसा बराबर हुआ है कि एक ही चरित्र पर विदेशों में भी,जैसे फाउस्ट बहुत महत्वपूर्ण ग्रीक मिथोलोजिकल फिगर थे, अंग्रेज नाटककार मार्लो ने एक नाटक लिखा उनपर, सर टामस मान ने लिखा, उसके पहले गेटे ने भी फाउस्ट पर लिखा, एक फाउस्ट पर इतने लोगों ने लिखा है. हर संस्कृति और सभ्यता में कुछ ऐसे चरित्र होते हैं जो उसके अंग बन जाते हैं. 

बातचीत काफी लंबी है गर रोचक लगे तो यहाँ पढ़ें - 
ॐ, हाइमाट और घर – महज शब्द नहीं, पूरी संस्कृति हैं – नामवर सिंह


Tuesday, 14 September 2010

चिदम्बरम साहब, अपने मंत्रालय की हिंदी सुधारिए

पी चिदम्बरम साहब के भाव-विभोर कर देने वाले संदेश को पढ़ने के बाद अगर आप गृह मंत्रालय की हिन्दी साइट को देखें, तो शुरुआत ही उनकी और उनके मंत्रालय यानी गृह मंत्रालय की हिन्दी के प्रति निष्ठा का आभास होना शुरू हो जाएगा. आपको क्लिक करना होगा...'हिन्दी मे'. और फिर शुरू होगी एक ऐसी पीड़ा जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम होगा.  देखिए यहाँ.