Wednesday 25 November, 2009
राजेन्द्र यादव और मन्नू भंडारी की पारिवारिक तस्वीरें
राजेन्द्र यादव और मन्नू भंडारी ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें हिन्दी साहित्य से थोड़ा भी सरोकार रखने वाला शायद हर व्यक्ति जानता होगा. हाल ही में राजेन्द्र जी ने अस्सी को पार किया है. मैं जब दिल्ली में बतौर पत्रकार काम करती थी तो संस्कृति जगत की कई जानी-मानी हस्तियों को करीब से देखने का सौभाग्य मिला था. हम लिटरेचर इंडिया पर राजेन्द्रजी और मन्नूजी और उनके परिवार की कुछ तस्वीरों को रख रहे हैं. दाहिनी ओर स्थित विज़ेट में कुछ ऐसी ही तस्वीरों को देखिए. उम्मीद करते हैं आपको पसंद आएगी.
Friday 13 November, 2009
196 - कुछ कम तो नहीं
मैंने ब्राउज़ करते हुए यूनेस्को की साइट पर एक नक्शे में खतरे की कगार पर खड़ी भाषाओं की सूची में पाया कि मात्र भारत में ही 196 भाषाएं विलुप्त होने की विभिन्न स्थितियों पर हैं. तो 196 भाषाओं को निकट भविष्य में भारत के नक्शे से मिटा दिया जाएगा. आप नक्शा देखें, ध्यान से. इन भाषाओं को मुख्य रूप से हमारे आदिवासी आबादी द्वारा बोला-सुना जाता है. हमने जंगल ले लिया है, हमने उनका भोजन ले लिया है; अब उनकी भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं. एक भाषा मर रही है, एक संस्कृति मर रही है; 196 भाषाएं मरेंगी, 196 संस्कृतियां मरेंगी. अल्पसंख्यक भाषा और उसकी संस्कृति के लिए उपलब्ध कराए गए मूलाधिकार का क्या होगा? यह अच्छा नहीं है, यह स्वस्थ संकेत तो नहीं ही है.
अल्पसंख्यक के नाम पर हमें उर्दू और पंजाबी सरीखी भाषाएं शायद याद आती हैं. इनका क्या होगा? हम अपने हिन्दी भाषी क्षेत्र में ही अवधी, ब्रज, मगही, अंगिका जैसी भाषाओं को मिटाते जा रहे हैं. बिहार सरकार का उदाहरण लें तो वहां कुछ अकादमियां हैं इनके नाम पर. लेकिन शायद भाषा व संस्कृति नीतीशजी की बौद्धिकता से सरोकार नहीं रखती हैं. विषयांतर हो रहा है...लेकिन भाषाएं संस्कृति की अभिलेखागार हैं और भाषाओं और इस बहाने संस्कृतियों को हम लगातार धीमी मौत की नींद सुलाते जा रहे हैं. इसके क्या कारण हैं...!?
अल्पसंख्यक के नाम पर हमें उर्दू और पंजाबी सरीखी भाषाएं शायद याद आती हैं. इनका क्या होगा? हम अपने हिन्दी भाषी क्षेत्र में ही अवधी, ब्रज, मगही, अंगिका जैसी भाषाओं को मिटाते जा रहे हैं. बिहार सरकार का उदाहरण लें तो वहां कुछ अकादमियां हैं इनके नाम पर. लेकिन शायद भाषा व संस्कृति नीतीशजी की बौद्धिकता से सरोकार नहीं रखती हैं. विषयांतर हो रहा है...लेकिन भाषाएं संस्कृति की अभिलेखागार हैं और भाषाओं और इस बहाने संस्कृतियों को हम लगातार धीमी मौत की नींद सुलाते जा रहे हैं. इसके क्या कारण हैं...!?
Wednesday 4 November, 2009
मैथिली में फायरफाक्स - काम शुरू
इधर महीने भर पहले से मैथिली में फ़ायरफ़ॉक्स को लाने के लिए काम शुरू कर दिया है. उम्मीद है कि कुछ दिनों में इसका अनुवाद पूरा हो जाएगा और एक ब्राउज़र जिसका मैथिली भाषा में अभाव था पूरा हो जाएगा. हालांकि कांकरर नाम ब्राउजर केडीई के साथ पहले हुआ है लेकिन फ़ायरफ़ॉक्स काफी बेहतर है. फेडोरा ऑपरेटिंग सिस्टम भी पूरा का पूरा मैथिली में रिलीज हो ही चुका है. अपनी भाषा में कंप्यूटर देखकर बेहद खुशी होती है. अबतक हमलोगों ने गनोम, केडीई और फेडोरा पूरा कर दिया है और उम्मीद है कि हम फ़ायरफ़ॉक्स को भी अपस्ट्रीम के साथ रिलीज करबा पाएंगे.
Wednesday 28 October, 2009
आईडीएन पर सी डैक द्वारा कार्यशाला
अंतरराष्ट्रीय डोमेन नाम (आईडीएन) पर सी डैक द्वारा कार्यशाला आयोजित किया जा रहा - पुणे में। यह कार्यशाला वस्तुतः जागरुकता बढ़ाने के लिए है। इसमें सूचना व प्रौद्योगिकी विभाग (डीआईटी) का सहयोग भी है। यह 29 अक्टूबर 2009 को पुणे में आयोजित किया जा रहा है। आईडीएन से फायदा यह होगा कि हम अपनी साइट का नाम जैसे भाषाघर.in लिखकर भी खोल पाएंगे। यानी लैटिनेतर लिपि में भी डोमेन नाम उपलब्ध होंगे। पूरी खबर यहां देखें।
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