मैंने ब्राउज़ करते हुए यूनेस्को की साइट पर एक नक्शे में खतरे की कगार पर खड़ी भाषाओं की सूची में पाया कि मात्र भारत में ही 196 भाषाएं विलुप्त होने की विभिन्न स्थितियों पर हैं. तो 196 भाषाओं को निकट भविष्य में भारत के नक्शे से मिटा दिया जाएगा. आप नक्शा देखें, ध्यान से. इन भाषाओं को मुख्य रूप से हमारे आदिवासी आबादी द्वारा बोला-सुना जाता है. हमने जंगल ले लिया है, हमने उनका भोजन ले लिया है; अब उनकी भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं. एक भाषा मर रही है, एक संस्कृति मर रही है; 196 भाषाएं मरेंगी, 196 संस्कृतियां मरेंगी. अल्पसंख्यक भाषा और उसकी संस्कृति के लिए उपलब्ध कराए गए मूलाधिकार का क्या होगा? यह अच्छा नहीं है, यह स्वस्थ संकेत तो नहीं ही है.
अल्पसंख्यक के नाम पर हमें उर्दू और पंजाबी सरीखी भाषाएं शायद याद आती हैं. इनका क्या होगा? हम अपने हिन्दी भाषी क्षेत्र में ही अवधी, ब्रज, मगही, अंगिका जैसी भाषाओं को मिटाते जा रहे हैं. बिहार सरकार का उदाहरण लें तो वहां कुछ अकादमियां हैं इनके नाम पर. लेकिन शायद भाषा व संस्कृति नीतीशजी की बौद्धिकता से सरोकार नहीं रखती हैं. विषयांतर हो रहा है...लेकिन भाषाएं संस्कृति की अभिलेखागार हैं और भाषाओं और इस बहाने संस्कृतियों को हम लगातार धीमी मौत की नींद सुलाते जा रहे हैं. इसके क्या कारण हैं...!?
2 comments:
भाषाए धरोहर होती है. इन्हे सहेजना जरूरी है.
अच्छा आलेख
आपने बहुत अच्छा लिखा है। विचार और शिल्प प्रभावित करते हैं। मैने भी अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन-मौका लगे तो पढ़ें और अपनी राय भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
मेरी कविताओं पर भी आपकी राय अपेक्षित है। यदि संभव हो तो पढ़ें-
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