"मुंबई की बात अलग है. ये धमाके जरा लीक से हटके थे. इसबार जो मरे उसमें बहुतायत अभिजात्यों की है, 22-23 तो विदेशी नागरिक है. हमला किसी लोकल ट्रेन, किसी संकट मोचन मंदिर या मक्का मस्जिद पर नहीं था जहाँ आम आदमी जाते और मारे भी जाते हैं. यह हमला धनाढ्यों के ऐश्वर्य प्रदर्शन के महामंदिरों ताज और ओबेराय होटलों पर था. सर्वविदित है कि वहाँ जाने वाले आधुनिक भारत के राजकुमारों (ब्लू ब्लडेड एलीट) का खून कितना बेशकीमती है."
यह अंश है मुंबई धमाकों पर डा. चंद्रमोहन के लिखे लेख का. मुंबई बम धमाकों को, एक युवा लेखक चंद्रमोहन ने जो कि पेेशे से चिकित्सक हैं, अलग तरीके से लेने की कोशिश की है...कि क्यों इस धमाके की आवाज दूर तलक गई. और पढें ...मुम्बई ब्लास्ट: लीक से हटकर
2 comments:
संगीता जी,
चन्द्रमोहन जी का खाना मुझे भी ऐसा ही लगता है.
एक समर्थ और सार्थक अभिव्यक्ति के लिए सिर्फ़ बधाई काफी नहीं होती..... आपका लेखन फले-फूले और आपके शब्दों को नित नए अर्थ और रूप मिलें यही शुभ कामना है.
मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
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